पैराशूट से भी उतर रहे प्रत्याशी, कार्यकर्ताविहिन नेता भी मांग रहे है टिकट
संजय बाजपेई
धार। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है वैसे-वैसे दावेदारों में जोर आजमाइश बढ़ती जा रही है। हर कोई टिकट पाने की जुगाड़ में लगा हुआ है। इनमें कुछ तो ऐसे है जो पैराशूट से इंट्री लेकर दावेदारी प्रस्तुत कर रहे है तो वहीं कुछ ऐसे है तो जिनके पास पोलिंग बूथ पर बैठने के लिए भी पर्याप्त कार्यकर्ता नहीं है, लेकिन वे विधानसभा टिकट की दावेदारी कर रहे है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ओर से दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है और जिन्हें टिकट नहीं मिलने की उम्मीद है वे दल बदलने की धमकी भी दे रहे है। कुछ तो दल बदल भी चुके है। वर्तमान परिवेश में राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं में पार्टी के प्रति वफादारी नहीं बची है। टिकट या पद नहीं मिलने के कारण वे तुरंत दल बदल लेते है। पार्टी हित के बजाय नेताओं में निजी स्वार्थ ज्यादा हावी है। अभी हाल ही में बदनावर से पूर्व विधायक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता ने टिकट न मिलने पर दल बदलकर वर्षों से भाजपा पार्टी से लाभ लेने के बावजूद पार्टी को छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है। जब वरिष्ठ नेता ही इस प्रकार दल-बदलू रहेंगे तो नए कार्यकर्ता उनसे क्या शिक्षा लेंगे? जिस पार्टी का जीवनभर दोहन करते है और एक बार टिकट या पद न मिलने पर उसी पार्टी के साथ गद्दारी कर देते है। ऐसे नेता पार्टी के लिए नासूर होते है। पहले पार्टी के नेता या कार्यकर्ताओं के लिए अपनी पार्टी सर्वोपरी होती थी। लेकिन अब नेताओं के लिए पार्टी नहीं बल्कि खुद का हित सर्वोपरी है। हालांकि भीतरघात का वायरस काफी पुराना है, लेकिन खुलेआम ही बगावत कर पार्टी के लिए गड्ढे खोदाना आम बात हो गया है। भाजपा एक अनुशासित पार्टी मानी जाती है तथा उसके नेता पार्टी के बनाए अनुशासन पर चलते है। लेकिन जब वरिष्ठ नेता ही इस प्रकार का कृत्य करते है तो पूरी पार्टी कलंकित होती है।
पैराशूट से उतर रहे है नेता
टिकट पाने की होड़ दोनों ही पार्टी में मची हुई है। दोनों ही ओर से बड़ी संख्या में नेता टिकट पाने की जुगाड़ लगा रहे है। कांग्रेस में तो एक नवागत नैत्री पैराशूट से उतरकर विधानसभा का टिकट मांग रही है। जबकि विधानसभा में उनकी पार्टी के कार्यकर्ता ही उन्हें ठीक से नहीं पहचानते है। बावजूद इसके वे शुरूआत में जो पार्टी के कार्य होते है, उसे न करते हुए वे सीधे टिकट मांग रही है। यदि ऐसे ही टिकट मिलने लगेंगे तो जो जमीनी कार्यकर्ता है, वे भी पार्टी के लिए काम करना बंद कर देंगे। अत: पार्टी को कार्यकर्ताओं की भावनाओं की कद्र करते हुए कार्यकर्ताओं की पसंद से प्रत्याशी तय करना चाहिए क्योंकि कार्यकर्ता ही होते है जो अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए मेहनत करते है। वहीं जो नेता बरसों से पार्टी के लिए काम कर रहे है वे भी ऐसे प्रत्याशियों को सहन नहीं कर पाते है। सिर्फ फ्लैक्स पोस्टर लगाकर नेता नहीं बना जा सकता। नेता बनने के लिए जमीनी स्तर पर बरसों काम करना पड़ता है।
गंधवानी में कांग्रेस को वॉकओवर?
भाजपा ने जिन विधानसभाओं में प्रत्याशी तय कर दिए है, उसमें गंधवानी भी शामिल है। गंधवानी से भाजपा ने सरदार सिंह मेड़ा को प्रत्याशी घोषित किया है जो कि वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष भी है। वहीं कांग्रेस से उमंग सिंघार को टिकट मिलना तय माना जा रहा है। उमंग सिंघार पिछले 15 वर्षों से गंधवानी से विधायक है और क्षेत्र में उनकी जबरदस्त पकड़ है। ऐसे में सरदारसिंह मेड़ा को टिकट देना कहीं न कहीं कांग्रेस को वॉकओवर देने के समान है, क्योंकि सरदारसिंह मेड़ा क्षेत्र में सक्रिय नहीं है। हालांकि पार्टी ने उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया था ताकि वे क्षेत्र में मतदाताओं के बीच जाकर कार्य करें और विधानसभा चुनाव में उसका लाभ ले सके। लेकिन सरदारसिंह मेड़ा निष्क्रिय रहे और इसके चलते गंधवानी क्षेत्र में चर्चा है कि इस बार भी गंधवानी में कांग्रेस ही जीत का परचम लहराएगी?
कार्यकर्ता विहिन नेता भी मांग रहे टिकट
टिकट मांगने वाले नेता कुछ ऐसे भी है, जिनके पास कार्यकर्ताओं के नाम पर चार लोग है, लेकिन वे भी फ्लैक्स पोस्टर लगाकर अपने आपको विधानसभा का प्रबल दावेदार बता रहे है। आपको बता दे कि धार विधानसभा में 300 से अधिक बूथ होते है। एक बूथ पर कम से कम तीन कार्यकर्ता होना चाहिए, ऐसे में केवल बूथों पर बैठने के लिए ही 900 कार्यकर्ता तो प्रत्याशी के साथ होना ही चाहिए। लेकिन धार में कुछ ऐसे नेता दावेदारी कर रहे है, जिनके पास चार-पांच कार्यकर्ता ही है।